सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ़ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (CSSP) ने “भारत में महिला विमर्श: अधुनातन प्रवृत्तियां ” पर परिचर्चा का आयोजन कराया. इस चर्चा का आयोजन दिनांक 27 फरवरी दिन मंगलवार को कानपुर के मर्चेंट चैंबर में किया गया.
अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था के रिसर्च असिस्टेंट पंकज कुमार ने कहा कि भारत में महिलाओं के मुद्दे पर अब पहले से ज्यादा चर्चा हो रही है, दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों के अलावा अब छोटे शहरों और गांवों में भी महिलाओं के मुद्दे और उनके अधिकारों पर बात हो रही है. हालांकि महिलाओं के मुद्दों को उठाने के लिए पुरुष ही आगे आ रहे हैं जिसका नूतन उदाहरण आर बाल्कि द्वारा फिल्म पैडमैन बना कर पेश किया गया जिसने एक अनछुए मुद्दे को उठाया और देश में महिला विमर्श में एक नया अध्याय जोड़ा.
क्राइस्ट चर्च कॉलेज में हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुजाता चतुर्वेदी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि स्त्री को स्त्री के नजरिये से देखना होगा तब जाकर स्त्री पुरुष में समानता आएगी. उन्होंने कहा कि वैदिक काल में नारी की इज्जत आज से कहीं ज्यादा थी. उन्होंने निर्मला सीतारमण और सुषमा स्वराज का जिक्र करते हुए कहा कि देश के रक्षा-मंत्रालय और विदेश-मंत्रालय जैसा अहम विभाग आज महिलाएं चला रही हैं.
मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर, भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार से सम्मानित व स्त्रीघोष, आधी दुनिया का सच, विज्ञापन की दुनिया और समाचार बाजार की नैतिकता आदि पुस्तकों की लेखिका प्रो. कुमुद शर्मा ने सिमॉन द् बुआ का जिक्र करते हुए कहा कि औरत पैदा नहीं होती, बना दी जाती है. उन्होंने भारतीय साहित्य का जिक्र करते हुए औरत की इच्छाओं और अधिकारों को परिभाषित किया.
डॉ कुमुद ने स्त्री की अस्मिता और मुक्ति के संघर्ष को रेखांकित करते हुए बताया कि ‘पितृ-सत्तात्मक’ व्यवस्था से मुक्ति दिलाना उस संघर्ष का बेहद अहम् पहलू है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत में महिला विमर्श स्त्री की मुक्ति और अस्मिता का संघर्ष है. स्त्री का स्व आत्मदर्पण होता है लेकिन उस स्व को जब तक सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलेगी तब तक वो स्व पुष्ट नहीं होगा. भारतीय संदर्भ में स्त्री विमर्श हम विदेशों से आयातित कर रहे हैं जो कि नहीं होना चाहिये. उन्होंने महिला विमर्श को भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में आगे बढ़ाने पर बल दिया.
उन्होंने स्त्री विमर्श के बाजार की गिरफ्त में जाने पर चिंता भी जताई. प्रो. कुमुद ने स्त्री सशक्तिकरण के लिए चार सूत्रों – शक्ति, सृष्टि, दृष्टि और युक्ति – बताया. स्त्री के दो हथियार हैं, यौनता और क्रोध जिससे वो समाज से लड़ सकती है.
क्राइस्च चर्च कॉलेज कानपुर में राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. आशुतोष सक्सेना ने महिला विमर्श को राजनीतिक नजरिये से देखने पर बल दिया. उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष दोनों ही प्रकृति की सुंदर रचना हैं और स्त्री विमर्श में स्त्री और पुरुष दोनों की भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका है.
उन्होंने तीन प्रकार के स्त्री आंदोलनों का जिक्र किया, अराजकवादी, वामपंथी और उदारवादी. उन्होंने Six S मॉडल की बात की. जिसमें शिक्षा, समता, संवेदना, स्वावलंबन, स्वास्थ्य, समाजिक न्याय के समन्वय पर बल दिया.
वीएसएसडी कॉलेज के विधि विभाग के प्रोफेसर पी एन त्रिवेदी ने अनु० 15(3) का हवाला देकर बताया कि आज यदि महिलाओं के हित के लिए बनाया कोई कानून यदि संविधान के किसे प्रावधान से टकराता भी है तो भी उसे असंवैधानिक नहीं घोषित किया जा सकता.
गुरुनानक कॉलेज में राजनीति विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अनुभा कुमार ने कहा कि यौन शोषण से स्त्री का शारीरिक शोषण ही नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न भी होता है. इसलिए उस उत्पीड़न से बचाने के लिए शांति और व्यवस्था बहुत अहम है. उसके बिना किसी भी महिला का विकास संभव नहीं है.
एसएन सेन कॉलेज की कु० प्रिया ने ‘स्व’ के प्रति नारी चेतना के महत्त्व पर बल देते हुए कहा कि समाज ने बचपन से ही उसमे कूट-कूट कर ‘स्त्रीत्व’ भर दिया है जिसके बाहर महिला निकल नहीं पाती.
प्रमुख कार्डियोलॉजिस्ट डॉ आरती लालचंदानी ने कहा कि बच्चों में ‘पोर्न’ के बढ़ते आकर्षण के समाज में अनेक विकृतियाँ आ गई हैं और इससे महिलाओं की सुरक्षा का प्रश्न प्रमुख हो गया है.
कानपुर के विद्युत परिषद इंटर कॉलेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश प्रियम ने कहा कि हमें केवल महिला विमर्श तक ही सीमित नहीं रहना चाहिये बल्कि इसे आगे बढ़कर एक्शन प्लान बनाने की जरूरत है. जिससे कि हम प्रतिरोध की संस्कृति को जीवंत करके महिलाओं से जुड़ी समस्याओं का व्यावहारिक समाधान भी दे सकें.
केंद्रीय विद्यालय IIT कानपुर के प्रवक्ता मानवेंद्र ने कहा कि मार्केट इकॉनोमी द्वारा दिखाया जाना वाला स्त्री का रूप नारीवाद का नहीं हो सकता.
ज्वाला देवी महिला महाविद्यालय, कानपुर में हिंदी विभाग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. अरुणिमा कुमार ने महिला विमर्श में महिलाओं की समस्याओं के मूल समाधान का उल्लेख करते हुए बताया कि उनका संकल्प ही उनका सबसे बड़ा अस्त्र है. उन्होंने वर्तमान महिलाओं के समस्याओं के संघर्ष के लिए भारतीय दर्शन के मूल की ओर लौटने का आह्वान किया.
बाबा भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ के विकास शुक्ला ने महिला विमर्श में उदारवादी वामपंथी और रेडिकल तीनों ही दृष्टिकोणों को एकांगी बताया. इस बात पर बल दिया कि ये तीनों ही विमर्श प्रक्रियात्मक पक्ष पर तो बल देते ही हैं लेकिन महिलाओं की योग्यता की उपेक्षा करते हैं.
शोध छात्रा आकांक्षा निगम ने स्त्री द्वारा स्त्री के शोषण का मुद्दा उठाया और इससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने जनसहभागिता से परिवर्तन करने के प्रयास पर बल दिया.
GGIC कानपुर में प्रवक्ता रिचा मिश्रा ने परिवर्तित समाजिक परिवेश में स्त्रियों की बदलती हुई भावनाओं को रेखांकित किया और विवाह का उल्लेख करते हुये कहा कि स्त्रियों के समक्ष जो चुनौतियां आती हैं वह उसमें कुंठाएं पैदा कर देती हैं.
कार्यक्रम की अध्यक्षता डीजी कॉलेज की प्राचार्या डॉ. साधना सिंह ने की. उन्होंने स्त्रियों की हालत के सामाजिक आर्थिक पहलू पर बात की. उन्होंने पूछा कि जो महिलायें आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गई हैं वे भी अधीनता की परंपरागत व्यवस्था से क्यों समझौता कर लेती हैं? लेकिन जो महिलाएं ऐसा नहीं करती जैसे जो पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगती है, उनको अपने ही मायके में क्यों अपमानित होना पड़ता है?
उन्होंने कहा कि आज भी महिलाओं के अंत: वस्त्र साड़ी के नीचे क्यों सूखते हैं जबकि लड़कों के कपड़े खुले में? युवा महिलाओं को समस्याओं से छुपने की बजे ‘पब्लिक-स्पेस’ में अपनी उपस्थिति दर्ज करनी पड़ेगी.
हिंदी कथाकार सुमन श्रीवास्तव ने महिलाओं के पब्लिक स्पेस में स्थान ग्रहण करने को स्वागत योग्य तो बताया लेकिन उनके माता पिता के चिंताओं को भी रेखांकित करते हुये लड़कियों के पब्लिक स्पेस में स्वतंत्र विचरण पर चिंता जताई और उसका कारण वर्तमान परिदृष्य में शांति और व्यवस्था की स्थिति को जिम्मेदार ठहराया.
CSSP में रिसर्च असिस्टेंट कमल श्रीवास्तव ने इस बात पर चिंता जताई कि तमाम सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा महिलाओं की समस्याओं पर लगातार कार्य करने के बावजूद क्यों महिलाओं की समस्याएं हल नहीं हो रही हैं.
SIP फाउंडेशन के निदेशक वरुण कुमार त्रिपाठी ने महिलाओं के नाना प्रकार के पंथों के बाबाओं की शरण में जाने की प्रवृत्ति को महिला सशक्तिकरण में एक गंभीर व्यवधान के रूप में देखा. भारतीय संदर्भ में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का उल्लेख करते हुये उन्होंने इस बात पर बल दिया कि स्त्री और पुरुष समानता को केवल कानूनी ही नहीं वरन् अनेक रीति रिवाजों परंपराओं आदि के माध्यम से भी स्थापित करने का प्रयास किया गया.
एएनडी कॉलेज की डॉ. आरती द्विवेदी ने महिला विमर्श में महिलाओं की सोच, उनकी हिम्मत और हौसले की भूमिका को रेखांकित किया. तथा भविष्य में होने वाले सामाजिक परिवर्तन में उनकी सकारात्मक और सशक्त भूमिका के प्रति अपना विश्वास व्यक्त किया.
दैनिक जागरण कानपुर में पत्रकार अश्वनी कुमार पांडेय ने कहा कि इतिहास में महिलाओं के कार्य और शक्तियों को कौन नहीं जानता. और नही उसे नकारा जा सकता है. बस आज समय की धारा को बदलना होगा जो कि महिलाओं की सुरक्षा और अस्मिता के लिए जरूरी है.
कार्यक्रम के अंत में CSSP के निदेशक डॉ. एके वर्मा ने धन्यवाद देते हुए बताया कि महिला विमर्श के विविध आयाम है जो वैश्विक, राष्ट्रिय और स्थानीय आदि हो सकते हैं. इसी प्रकार, नारी के विकास के विभिन्न चरणों जैसे बालिका, युवती, महिला, विवाहिता आदि के विमर्श भी बदल जाते हैं. जब भारत में ‘अर्ध-नारीश्वर’ का दार्शनिक आधार है तो पश्चिम से बहुत पहले भारत में स्त्री-पुरुष समानता का पाठ सहज उपलब्ध था, स्त्री-विमर्श को इतना स्त्री-केन्द्रित न किया जाये कि उसमे ‘मानव’ बोध लुप्य हो जाये.
कार्यक्रम में डॉ. रानी वर्मा, डॉ. ज्योति सक्सेना, डॉ. पप्पी मिश्रा, डॉ. प्रतिमा गंगवार, डॉ. एसएन मिश्रा, श्री एपी श्रीवास्तव, पूनम राय, श्रीकांत शर्मा, अभय राज सिंह, वंदना शर्मा, शिवम यादव, पवन शर्मा समेत शहर के अनेक गणमान्य नागरिक मौजूद रहे.
कार्यक्रम की कुछ अन्य तस्वीरें आप नीचे देख सकते हैं.